1. “राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा” कविता का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश गुरुनानक द्वारा रचित प्रथम पद से उद्धृत है। इसमें कवि जपनाम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि जिसने जन्म लेकर राम की कीर्तन नहीं की उसका जीवन निरर्थक है। जिस व्यक्ति का खान–पान, रहन–सहन आदि विष से परिपूर्ण होता है वह निरुद्धेश्य भटकता रहता है। जो रामनाम के महत्व की अवहेलना कर शास्त्र–पुराणों की चर्चा करने तथा त्रिकाल संध्यादि में मस्त हो जाता है, वैसा व्यक्ति बिना गुरु की वाणी या रामनाम के बिना इस संसारिक माया–मोह में उलझ कर रह जाता है। इसमें कवि बाह्याडम्बर की आलोचना करते हुए कहते हैं कि जटा बढ़ाकर, भस्म लगाकर तीर्थाटन करने से लोगों को आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती। कवि का कहना है कि गुरु कृपा और रामनाम ही जीवन की सार्थकता है। रामनाम के स्मरण से ही सांसारिक माया–मोह से मुक्ति मिल सकती है।
2. आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों की क्या प्रासंगिकता है ? अपने शब्दों में विचार करें।
उत्तर- आज उपासना के विविध रूप प्रचलित हैं। घरों में पूजा, प्रवचन श्रवण, धार्मिक त्योहारों में सम्मिलित होना, तीर्थ स्थलों में भ्रमण इत्यादि उपासना के रूप अपनाए जा रहे हैं। राजनीतिक भ्रष्टाचार के साथ-साथ धार्मिक भ्रष्टाचार के भी समाचार मिल रहे हैं। मनुष्य गलाघोंटू आर्थिक प्रतियोगिता की चपेट में झुलस रहा है। जीवन में शांति का स्थान तनाव ने ले लिया है। सात्विक की जगह तामसिक भोजन लोग कर रहे हैं। सोमरस की दुकान पर भीड़ लग रही है। मटे का सेवन कोई नहीं कर रहा है। अतः ऐसे युग में गुरुनानक के संदेशों की प्रासंगिकता और बढ़ गयी है।
राम नाम लेकर ईश्वरत्व की प्राप्ति करनी चाहिए। मीठी वाणी बोलनी चाहिए। गुरु के शब्दों का अनुसरण करना चाहिए। डंड, कमंडल, चोटी गुथियाना, धोती, तीरथ और तीर्थ का झूठा भ्रमण नहीं करना चाहिए। राम नाम के बिना शांति नहीं मिलने वाली है। हरि नाम लेने वाला ही इस संसार से पार उतर सकता है।
3. निम्नलिखित पद्यांश की व्याख्या करें।
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर निरव रोदन,
युग-युग के तम से विषण्ण मन
वह अपने घर में प्रवासिनी !
उत्तर–प्रस्तुत पंक्तियाँ भारतमाता शीर्षक कविता से ली गई है। इसके कवि सुमित्रानंदन पंत है। कवि का कहना है कि भारतमाता गाँवों में निवास करती है। भारत के लोग गाँवों में निवास करते हैं। दीनता उनके चेहरे पर जड़ी हुई है। पलकें गिरती नहीं हैं। आँखें और चेहरा झुका हुआ है। होठों पर लम्बी अवधि से नि:शब्द रूलाई दिखाई पड़ती है। युग-युग से चले आ रहे अंधकार के कारण मन विषैला हो गया है। भारतमाता अपने घर में ही प्रवासिनी-परदेशिनी बनी हुई है। अंग्रेजों के शासन के कारण भारत गुलाम बना हुआ है।
4. निम्नांकित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
‘तीस कोटि सन्तान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्रजन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक तरू-तल निवासिनी।
उत्तर- भारतमाता ग्रामवासिनी’ शीर्षक कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि सुमित्रानन्दन पंत कहते हैं कि तीस करोड़ संतान वस्त्रहीन हैं। उनके शरीर पर वस्त्र नहीं है। वे भूखे हैं। उनका पेट आधा खाली है। वे शोषित हैं। उनका शोषण होता है। वे अस्त्र विहीन हैं। वे मूर्ख हैं। वे असभ्य हैं। वे सभ्य नहीं हुए। वे गरीब हैं। वे धनविहीन हैं। उनका मस्तक झुका हुआ है। वे पेड़ों के नीचे निवास करते हैं। भारतमाता अर्थात् भारत के लोगों की दशा दयनीय है।