1. कवि की दृष्टि में आज भारत का तप-संयम क्यों सफल है ?
उत्तर–कवि की दृष्टि से आज भारत का घोर तप और संयम सफल हुआ है। उसने अहिंसा रूपी अमृत के समान अपना दूध पिलाकर भारतीयों के मन के भय को दूर किया है । आज भारत अपने तप और संयम के बल अज्ञान के अंधकार और भ्रांतियों के जाल को तोड़ चुका है । भारत इसी तप और संयम के रास्ते चलकर नये-नये विकास की मंजिल को छू रहा है । हमारी प्रगति और विकास का आधार शांति, अहिंसा, तप और संयम है।
2. बहादुर, किशोर, निर्मला और कथावाचक का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर- वहादर‘ कहानी में कहानीकार अमरकांत एक नौकर की बहाली के बाद परिवार के लोगों की विरोधी प्रतिक्रियाओं का अभिलेख है । यह मध्यम वर्ग की जानी–मानी त्रासदी है । नौकर एक अमीरी के प्रतीक में सबलोग रखना चाहते हैं, लेकिन घर में सामंजस्यपूर्ण ढंग से रखना परिवार के कम लोग जानते हैं । ‘कहानी में मॅझोल शहर के नौकर की लालसा वाले एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में काम करनेवाले बहादर की कहानी है एक नेपाली गवई गोरखने की । परिवार का नौकरी पशा मुखिया तटस्थ स्वर में बहादुर के आने और अपने स्वच्छंद निश्छल ग्वभाव की आत्मीयता के साथ नौकर के रूप में अपनी सेवाएं देने के बाद एक दिन स्वभाव की उसी स्वच्छंदता के साथ हर हृदय में एक कसकती अंतर्व्यथा देकर चल जाने की कहानी कहता है । लेखक घर के भीतर और बाहर के यथार्थ को विना बनाई सँवारी सहज परिपक्व भाषा में पूरी कहानी बयान करता है । हिन्दी कहानी में एक नये नायक को यह कहानी प्रतिष्ठित करती है ।
बहादुर- बहादर बारह तेरह वर्ष की उम्र का ठिगना, चकइट शरीर, गोरा रंग और चपटा मुंह का नेपाली था । वह ईमानदारी, निष्ठा एवं समर्पण के भाव से लेखक के घर में नौकर का काम करता था । लेखक उसकी निश्छलता का प्रशंसक था । ग्त्री निर्मला भी सुखी हो रही थी । लेकिन बेटा किशोर उसकी पिटाई करता था । एक रिश्तेदार ने रुपयों की चोरी का आरोप लगाकर उसे बदनाम कर दिया । निर्मला ने भी चाँटे लगा दिए । वह भाग खड़ा हुआ ।
किशोर- लेखक का बड़ा बेटा किशोर काफी शान–शौकत और रोब-दाब से रहने का कायल था । उसने बहादुर पर कड़ाई करना प्रारंभ कर दिया । तेल-मालिश भी बहादुर से कगता था । बहादुर में गलती होने पर गर्जन-तर्जन करने लगता । उसे बरी बरी गालियाँ देने लगता था । किशोर ने बहादुर की डंडे से पिटाई भी की। किशोर बहादुर को ‘सुअर का बच्चा’ कहता था ।
निर्मला- निर्मला लेखक की पत्नी थी । निर्मला ने बहादुर को कुछ व्यावहारिक उपदेश दिए मुहल्ले के लोगों से दूर रहने का । निर्मला ने बहुत ही उदारतापूर्वक नौकर के नाम से ‘दिल’ शब्द उड़ा दिए । ‘दिल बहादुर’ अब बहादुर हो गया । बहादर को वह नाश्ता कराती । कहती मैं दूसरी औरतों की तरह नहीं हूँ, जो नौकर-चाकर को जलाती-भुनाती हूँ । मैं तो नौकर को बच्चे की तरह रखती हूँ । निर्मला ने बहादुर को एक दरी दे दी थी । बहादुर की वजह से घर भर को खूब आराम मिला । पहले निर्मला बहादुर को रोटियाँ बनाकर देती थी। बाद में उसे ही बनाने के लिए कहा । किशोर और निर्मला बहादुर की पिटाई भी करते थे । निर्मला के चाँटे के बाद बहादुर भाग गया । निर्मला को अंत में पछतावा हुआ ।
कथावाचक- कथावाचक लेखक ही है। पूरी कहानी में लेखक निष्पक्ष और निलिप्त है। वह बिना लाग-लपेट, सुधार संशोधन और संकोच-तटस्थ है। बहादुर उससे नि:संकोच होकर बातें करता । बहादुर लेखक की तरफ मुँह झुका कर मुस्काने लगता था। बहादुर कहता बावजी, बहिन जी का एक सहेली आया था। बाबूजी सिनमा गया था। बहादुर की हँसी बड़ी कोमल और मीठी थी, जैसे फूल की पंखुड़ियाँ बिखर गई हो। कथावाचक लेखक से बहादुर बात करना चाहता, पर लेखक गंभीर भी हो जाता। लेखक कथा में नि:संग व्यक्तित्व लेकर प्रकट होता है।