इतिहास [ कक्षा-10 ]
1. यूरोप में राष्ट्रवाद
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1. हंगरी के राष्ट्रीय आंदोलन में कोसूथ के योगदान का वर्णन करें।
उत्तर- राष्ट्रवादी भावना का प्रभाव हंगरी पर भी पड़ा। यह आस्ट्रिया के अधीन था। हंगरी में राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व कोसुथ तथा फ्रांसिस डिक ने किया। कोसूथ लोकतांत्रिक विचारों का समर्थक था, उसने वर्गहीन समाज (Class-less Society) के विचारों से जनता को परिचित कराया जिसपर प्रतिबंध लगा दिया गया । कोसूथ आस्ट्रियाई अधीनता का विरोध कर यहाँ की व्यवस्था में बदलाव की माँग करने लगा । इसका प्रभाव हंगरी और आस्ट्रिया की जनता पर पड़ा। 31 मार्च, 1848 ई० को आस्ट्रिया की सरकार ने हंगरी की बातें मान लीं । हंगरी के स्वतंत्र मंत्रिपरिषद् की माँग स्वीकार की गई। इसमें केवल हंगरी के सदस्य ही सम्मिलित किये गये । हंगरी में प्रेस को स्वतंत्रता दी गई, राष्ट्रीय सुरक्षा सेना की स्थापना की गई, सामंती प्रथा समाप्त कर दी गई तथा प्रतिनिधि सभा (डायट) की बैठक प्रतिवर्ष हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में बुलाने की बात स्वीकार की गई ।
2. यूरोप में राष्ट्रवाद को फैलाने में नेपोलियन बानापाट किस तरह सहायक हुआ ?
उत्तर – यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के विकास में फ्रांस की राज्यक्रांति के चात नेपोलियन के आक्रमणों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। फ्रांसीसी क्रांति ने राजनीति को अभिजात्यवर्गीय परिवेश से बाहर कर उसे अखबारों, सड़कों और सर्वसाधारण की वस्तु बना दिया। यूरोप के कई राज्यों में नेपोलियन के अभियानों दारा नवयुग का संदेश पहुँचा। नेपोलियन ने जर्मनी और इटली के राज्यों को भौगोलिक नाम की परिधि से बाहर कर उसे वास्तविक एवं राजनैतिक रूपरेखा प्रदान की। जिससे इटली और जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। दूसरी तरफ नेपोलियन की सुधारवादी नीतियों के कारण फ्रांसीसी प्रभुता और आधिपत्य के विरुद्ध यूरोप में देशभक्तिपूर्ण विक्षोभ भी जगा।
3. लौह एवं रक्त की नीति क्या थी ?
उत्तर- लौह एवं रक्त की नीति का प्रतिपादन बिस्मार्क ने किया था। इस नीति के अनुसार सैन्य शक्ति की सहायता से पूरे जर्मन प्रदेश का एकीकरण करना था।
4. मेटरनिख युग क्या है ?
उत्तर- मेटरनिख ऑस्ट्रिया का चांसलर था। वियना कांग्रेस (सम्मेलन) के द्वारा यूरोप में नेपोलियन युग का अंत हुआ और मेटरनिख युग की शुरुआत हुई। मेटरनिख घोर प्रतिक्रियावादी था तथा राष्ट्रवाद एवं गणतंत्र का विरोधी था। 1848 की क्रांति के द्वारा मेटरनिख युग की समाप्ति हो गयी।
5. मेटरनिख कौन था ? यूरोपीय इतिहास में वह क्यों विख्यात है ?
उत्तर – मेटरनिख ऑस्ट्रिया का चांसलर था। वह घोर प्रतिक्रियावादी, क्रांति के संदेशों का कट्टर विरोधी एवं पुरातन व्यवस्था बनाए रखने का समर्थक था। उसने जिस प्रकार की व्यवस्था यूरोप में स्थापित की उसे मेटरनिख व्यवस्था कहा जाता है। अपनी इसी व्यवस्था के कारण वह यूरोपीय इतिहास में विख्यात है।
6. राष्ट्रवाद क्या है ?
उत्तर- सामान्य अर्थों में राष्ट्रवाद का अर्थ अपने राष्ट्र के प्रति सोच और लगाव की भावना का विकास करना है। दूसरे अर्थों में राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है जो किसी विशेष भौगोलिक, सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता की वाहक बनती है।
7. इटली के एकीकरण में काबूर की भूमिका का उल्लेख करें। अथवा, काबूर का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर- काबूर को इटली के एकीकरण का राजनीतिज्ञ कहा जाता है। 1850 में वह सार्डिनिया के राजा विक्टर इमैनुएल का मंत्री एवं 1852 में प्रधानमंत्री बना। उसने सैनिक और आर्थिक सुधारों द्वारा सार्डिनिया की स्थिति सुदृढ़ की। पेरिस शांति सम्मेलन में उसने इटली के एकीकरण का प्रश्न उठाया। 1859 में ऑस्ट्रिया को पराजित कर काबूर ने लोम्बार्डी पर अधिकार कर लिया।
8. इटली के एकीकरण में काबूर की भूमिका का उल्लेख करें। अथवा, काबूर का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर- काबूर को इटली के एकीकरण का राजनीतिज्ञ कहा जाता है। 1850 में वह सार्डिनिया के राजा विक्टर इमैनुएल का मंत्री एवं 1852 में प्रधानमंत्री बना। उसने सैनिक और आर्थिक सुधारों द्वारा सार्डिनिया की स्थिति सुदृढ़ की। पेरिस शांति सम्मेलन में उसने इटली के एकीकरण का प्रश्न उठाया। 1859 में ऑस्ट्रिया को पराजित कर काबूर ने लोम्बार्डी पर अधिकार कर लिया।
9. मेजिनी कौन था ?
उत्तर- मेजिनी को इटली के एकीकरण का पैगंबर या मसीहा कहा जाता है। वह साहित्यकार गणतांत्रिक विचारों का समर्थक और योग्य सेनापति था। अपने गणतंत्रवादी उद्देश्यों के प्रचार के लिए उसने 1831 में ‘यंग इटली’ की स्थापना की। मेजिनी का उद्देश्य आस्ट्रिया के प्रभाव से इटली को मुक्त करवाना तथा संपूर्ण इटली का एकीकरण करना था।
10. गैरीबाल्डी कौन था ? इटली के एकीकरण में उसकी क्या भूमिका थी ? अथवा गैरीबाल्डी के कार्यों की चर्चा करें।
उत्तर- इटली के एकीकरण का द्वितीय चरण गैरीबाल्डी की तलवार ने पूरा किया। वह युद्ध की नीति में विश्वास करता था। उसने सशस्त्र युवकों की एक टुकड़ी बनाई जो ‘लाल कुर्ती’ कहलाए। इनकी सहायता से उसने सिसली पर अधिकार कर वहाँ गणतंत्र की स्थापना की। वह पोप के राज्य पर भी आक्रमण करना चाहता था, परंतु काबूर ने इसकी अनुमति नहीं दी।
11. जर्मनी के एकीकरण के लिए बिस्मार्क ने कौन-सी नीति अपनायी ?
उत्तर- प्रशा का राजा विलियम प्रथम ने प्रख्यात राष्ट्रवादी और कूटनीतिज्ञ बिस्मार्क को अपना प्रधानमंत्री (चांसलर) नियुक्त किया। जर्मनी के एकीकरण के लिए बिस्मार्क ने ‘रक्त और तलवार’ की नीति अपनायी। सबसे पहले बिस्मार्क ने आर्थिक सुधारों के द्वारा प्रशा की स्थिति मजबूत की। इससे सैनिक शक्ति सुदृढ़ हुई। प्रशा के एकीकरण के लिए उसने डेनमार्क, आस्ट्रिया तथा फ्रांस के साथ युद्ध किया। इसके परिणामस्वरूप ही यूरोप के नक्शे पर एकीकृत जर्मन राष्ट्र का उदय हुआ।
12. फ्रैंकफर्ट संसद की बैठक क्यों बुलाई गई ? इसका क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर- फ्रैंकफर्ट संसद की बैठक बुलाने का मुख्य उद्देश्य जर्मन राष्ट्र के निर्माण की योजना बनाना था। इसके अनुसार जर्मन राष्ट्र का प्रधान एक राजा को बनाना था जिसे संसद के नियंत्रण में काम करना था तथा जर्मनी का एकीकरण उसी के – नेतृत्व में होना था। लेकिन जब प्रशा के राजा फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ ने यह प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तो परिणामस्वरूप एसेंबली भंग हो गयी तथा जर्मनी का’ – एकीकरण पूरा नहीं हो सका।
13. 830 की जुलाई क्रांति का फ्रांस पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर- 1830 की जुलाई क्रांति के परिणामस्वरूप फ्रांस में निरंकुश राजशाही का स्थान संवैधानिक गणतंत्र ने ले लिया। इस क्रांति ने फ्रांसीसी क्रांति के सिद्धांतों को पुनर्जीवित किया तथा फ्रांस में उदारवादी मध्यमवर्ग का राजनीतिक महत्त्व बढ़ गया।
14. बिस्मार्क के कार्यों की चर्चा करें।
उत्तर- जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। वह विख्यात राष्ट्रवादी और कूटनीतिज्ञ थे। फ्रैंकफर्ट संसद में उसने भाग लिया। वे रूस – और फ्रांस में राजदूत भी रहे। 1862 में वह प्रशा का चांसलर बना। सर्वप्रथम बिस्मार्क । ने प्रशा की आर्थिक और सैनिक शक्ति सुदृढ़ की। तत्पश्चात उसने डेनमार्क (1864), आस्ट्रिया (1866-सेडोवा का युद्ध) तथा फ्रांस (1870-सीडान का युद्ध) को पराजित कर जर्मनी का एकीकरण किया।
15. यूनानी स्वतंत्रता संग्राम के परिणामों का उल्लेख करें।
उत्तर- 1932 में यूनान को एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र घोषित कर दिया गया। यद्यपि इस प्रक्रिया में गणतंत्र की स्थापना नहीं हो सकी। परंतु एक स्वतंत्र राष्ट्र के उदय ने मेटरनिख की प्रतिक्रियावादी नीति को गहरी ठेस लगाई। प्रतिक्रियावाद के विरुद्ध राष्ट्रवाद की विजय हुई। यूनानियों के विजय से 1830 के क्रांतिकारियों की प्रेरणा मिली। यूनानी स्वतंत्रता आंदोलन के परिणामस्वरूप बाल्कन क्षेत्र के अन्य ईसाई राज्यों में भी राष्ट्रवादी आंदोलन आरंभ करने की चाह बढ़ी।
16. जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर- फ्रेडरिक विलियम चतुर्थ की मृत्यु के बाद प्रशा का राजा विलियम सास बना। वह राष्ट्रवादी था तथा प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण करना चाहता था। विलियम जानता था कि आस्ट्रिया और फ्रांस को पराजित किए बिना जर्मनी का एकीकरण संभव नहीं है। अत: उसने 1862 ई० में ऑटोवॉन बिस्मार्क को अपना चांसलर (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया। बिस्मार्क प्रख्यात राष्ट्रवादी और कूटनीतिज्ञ था। जर्मनी के एकीकरण के लिए वह किसी भी कदम को अनुचित नहीं मानता था। उसने जर्मन राष्ट्रवादियों के सभी समूहों से संपर्क स्थापित कर उन्हें अपना प्रभाव में लाने का प्रयास किया। बिस्मार्क का मानना था कि जर्मनी की समस्या का समाधान बौद्धिक भाषणों से नहीं, आदर्शवाद से नहीं वरन् प्रशा के नेतृत्व में रक्त और लौह की नीति से होगा। 1871 ई० में फ्रैंकफर्ट की संधि द्वारा दक्षिणी राज्य उत्तरी जर्मन महासंघ में मिल गए। अंततोगत्वा जर्मनी 1871 ई० में एक एकीकृत राष्ट्र के रूप में यूरोप के मानचित्र पर उभरकर सामने आया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण थी।
17. जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर – शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने जर्मनी के एकीकरण के उद्देश्य से ‘ब्रूशेन शैफ्ट’ नामक सभा स्थापित की। वाइमर राज्य का येना विश्वविद्यालय राष्ट्रीय आंदोलन का केंद्र था। 1834 में जर्मन व्यापारियों ने आर्थिक व्यापारिक समानता के लिए प्रशा के नेतृत्व में जालवेरिन नामक आर्थिक संघ बनाया जिसने राष्ट्रवादी प्रवृत्तियों को बढावा दिया। 1848 ई० में जर्मन राष्ट्रवादियों ने फ्रैंकफर्ट संसद का आयोजन कर प्रशा के राजा फ्रेडरिक विलियम को जर्मनी के एकीकरण के लिए अधिकृत किया लेकिन फ्रेडरिक द्वारा अस्वीकार कर देने से एकीकरण का कार्य रुक गया। फ्रेडरिक की मृत्यु के बाद विलियम प्रथम प्रशा का राजा बना। विलियम राष्ट्रवादी विचारों का पोषक था। विलियम ने जर्मनी के एकीकरण के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर महान कूटनीतिज्ञ बिस्मार्क को अपना चांसलर नियुक्त किया। बिस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण के लिए “रक्त और लौह की नीति” का अवलंबन किया। इसके लिए उसने डेनमार्क, ऑस्ट्रिया तथा फ्रांस के साथ युद्ध किया। अंततोगत्वा जर्मनी 1871 में एकीकृत राष्ट्र के रूप में यूरोप के मानचित्र में स्थान पाया।