4. विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव
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1. विधुत धारा के चुंबकीय प्रभाव से संबंधित दक्षिण-हस्त अंगूठा का नियम लिखें।
उत्तर- दक्षिण-हस्त अंगूठा का नियम- जब दाहिने हाथ तर्जनी अंगुलि मध्यमिका अंगुलि और अंगूठा इस प्रकार फैलाकर रखा जाता है कि तीन अंगुलियाँ एक दूसरे के साथ लम्बवत् हो, अगर तर्जनी अंगुलि चुम्बकीय बल की दिशा की ओर, अंगूठा चुम्बक की गति की दिशा की ओर इंगित करे तो मध्यमिका अंगुलि प्रेरित धारा की दिशा को इंगित करेगा।
2. विधुत फ्यूज क्या है, यह किस मिश्र धातु का बना होता है ?
उत्तर- विधुत परिपथों के लिए फ्यूज तार का उपयोग होता है। यह अतिभारण अथवा लघुपथन के कारण उत्पन्न उच्च विद्युत धारा के बहने पर यह गल जाता है तथा सुरक्षा प्रदान करता है। फ्यूज तार ताँबे तथा टिन के मिश्रधातु से बना होता है।
3. विधुत चुम्बक के चुम्बकत्त्व की तीव्रता किन-किन बातों पर निर्भर करता है ?
उत्तर- विधुत चुम्बक के चुम्बकत्त्व की तीव्रता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है :
(i) परिनालिका के फेरों की संख्या- फेरों की संख्या (N) बढ़ने से चुम्बकत्त्व की तीव्रता (B) समानुपाती ढंग से बढ़ती है । अर्थात् B∝ N
(ii) धारा का मान- धारा का मान (I) बढ़ने पर चुम्बकत्त्व की तीव्रता (B) समानुपाती ढंग से बढ़ती है । अर्थात् B ∝ I
(iii) क्रोड के प्रकृति पर- परिनालिका के अंदर नरम लोहे का व्यवहार पर अधिक शक्तिशाली चुम्बक बनता है। लेकिन इस्पात के व्यवहार करने पर शक्तिशाली चुम्बक बनता है।
4. विद्युत बल्ब में निष्क्रिय गैस क्यों भरी जाती है ?
उत्तर- बल्ब के अंदर टंगस्टन का तार रहता है। इस तार का बना कुंडली के अन्दर उत्पन्न ताप के कारण प्रकाश देता है। अगर बल्ब में ऑक्सीजन । उपस्थिति होगी तो कुण्डली आक्सीकृत होकर जल जायेगा और बल्ब फ्यज जायेगा। यही कारण है कि बल्ब के अन्दर निष्क्रिय गैसें (N2, Ar) आदि भरी जाती है ताकि बल्ब फ्यूज नहीं हो सकें।
5. विद्युत चुंबक की विशेषताओं को लिखें।
उत्तर-(i) विद्युत चुंबक का चुंबकत्व स्थायी नहीं होता है। जबतक धारा बहती है चुंबकत्व कायम रहता है और धारा के बंद होने पर चुंबकत्व समाप्त हो जाता है।
(ii) विद्युत चुंबक के एक छोर पर उत्तरी ध्रुव और दूसरे छोर पर दक्षिणी ध्रुव पैदा हो जाते हैं। धारा की दिशा उलटने पर ध्रुवों की स्थिति बदल जाती है।
(iii) विद्युत चुंबक के चुंबकत्व की तीव्रता परिनालिका में फेरों की संख्या धारा के मान तथा क्रोड की प्रकृति पर निर्भर करता है।
6. किसी छड़ चुंबक के चारों ओर चुंबकीय बल रेखा दिखावें।
उत्तर –
चित्र में चुंबकीय बल रेखाओं को दिखाया गया है ।
7. चुंबकीय क्षेत्र क्या है ? क्षेत्र रेखाएँ एक दूसरे को नहीं काटती हैं क्यों ?
उत्तर- चुंबकीय क्षेत्र वह क्षेत्र हैं जिसमें चुंबकीय बल की पहचान की जा सकती है। प्रत्येक क्षेत्र रेखाएँ एक दूसरे को प्रतिकर्षित करती है।
8. परिनालिका की सहायता से स्थायी चुंबक कैसे बनता है ?
उत्तर- जब एक स्टील के छड़ को कुंडली के गर्भ में रख दी जाती है और विद्यत धारा प्रवाहित किया जाता है, तो स्टील का छड़ स्थायी चुंबक बन जाता है। इसे विद्युत चुंबक कहा जाता है ।
9. लघु पथन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- किसी कारण से जब जीवित तार और उदासीन तार एक दूसरे से सट जाते हैं तो लघुपथन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस परिस्थिति में प्रतिरोध शन्य हो जाता है और परिपथ में तीव्र धारा बहने लगती है। धारा के उच्च होने पर काफी ताप उत्पन्न होता है जिससे अग्नि की उत्पत्ति होने लगती है तथा परिपथ में आग लगने का भय रहता है।
10. विद्युत मोटर क्या है? इसके सिद्धांत और क्रियाविधि का सचित्र वर्णन करें।
उत्तर- विद्युत मोटर के इस सिद्धांत पर कार्य करती है, कि चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक रखने पर एक बल आरोपित होता है, जो चालक को किसी अक्ष पर घूमा सकता है। इसमें विद्युत ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है।
कार्यविधि- चुम्बक के दो ध्रुवों के बीच एक धारावाही कुण्डली है। जब धारा को प्रवाहित करना शुरू किया गया, तो कुण्डली क्षैतिज अवस्था में है आर्मेचर की कुण्डली में प्रवाहित धारा की दिशा ABCD है। कुण्डली पर आरोपित बल की दिशा फ्लेमिंग के बायें हाथ के नियम से ज्ञात कर सकते हैं। नियम का प्रयोग करके – हम ज्ञात करते हैं कि कुण्डली के भाग AB पर बल ऊपर की ओर आरोपित होता है। इस प्रकार यह दो बराबर, विपरीत तथा समांतर बलों का युग्म बन जाता है, जो कुण्डली को घड़ी की सूइयों की दिशा में घूमता है।
ABCD → धारावाही कुंडली
NS → नाल चुंबक
XY → विभक्त बलय
PQ → ब्रुश
यह प्रक्रिया बार-बार दुहरायी जाती है और कुण्डली तब तक घुर्णन करता है जब तक धारा प्रवाहित होती रहती है।
11. डायनेमो क्या है? इसके क्रिया सिद्धांत और कार्यविधि का सचित्र वर्णन करें।
उत्तर- डायनेमो ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत-ऊर्जा में बदला जाता है। इसकी क्रिया विद्युत-चुंबकीय-प्रेरण के सिद्धांत पर आधारित है। इसमें तार की एक कुण्डली ABCD होती है, जो एक प्रबल नाल-चुंबक के ध्रुवों के बीच क्षैतिज अक्ष पर चुंबकीय क्षेत्र में घूर्णन करती है। चित्र में घूर्णन की दिशा दक्षिणावर्ती दिखलायी गयी है। गतिशील चालक के प्रेरित धारा चालक गति की दिशा एवं चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के बीच के कोण की ज्या (sine) के समानुपाती होती है। घूर्णन के क्रम में कुण्डली जब चुम्बकीय क्षेत्र के लंबवत् रहती है, जिस कारण इसमें प्रेरित धारा शून्य होती है। किन्तु घूर्णन के क्रम में कुण्डली जब चुंबकीय क्षेत्र के समान्तर हो जाती है, तब इसकी AB भुजा की गति की दिशा चुंबकीय क्षेत्र दिशा के लंबवत् होती है, जिस कारण इसमें महत्तम धारा प्रेरित होती है। एक पूर्ण घूर्णन के क्रम में कुण्डली दो बार चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत् और दो बार समान्तर होती है, जिससे एक पूर्ण घूर्णन में AB भुजा में प्रेरित धारा दो बार शून्य होती है और दो बार महत्तम होती है।
ABCD → कुंडली
NS → नाल चुंबक
R1,R2, → विभक्त बलय
B1,B2, → कार्बन ब्रश
इस तरह प्राप्त हुई धारा परिपथ में एक ही दिशा में प्रवाहित होती है। यही कारण है कि इस विद्युत जनित्र में दिष्ट धारा जनित्र या डायनेमो के नाम से जाना जाता है।
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